इब्राहिम ट्रावरे ! सच में फिर से दोहराएगा इतिहास??
इब्राहिम ट्रावरे वही इब्राहिम ट्रावरे जिसे आज दुनिया मुसलमानों का नया लीडर कह रही है।
इब्राहिम ट्रावरे वही इब्राहिम ट्रावरे जिसे आज दुनिया मुसलमानों का नया लीडर कह रही है जो अपना रोल मॉडल हजरत बिलाल हबसी रदी अल्लाह ताला अनू को बताते हैं जिनका कंपटीशन लोग सुल्तान सलाहाउद्दीन अयूबी और सद्दाम हुसैन से कर रहे हैं जो अमेरिका इसराइल और यूरोप की आंखों में आंखें डालकर बात करता है जिनकी बहादुरी के चर्चे आज पूरी दुनिया में है। क्यों है इनका चर्चा? चलिए आज की आर्टिकल में जानते हैं कौन है इब्राहिम टावरे और बात करते हैं आज इब्राहिम टावरे की दिलचस्प कहानी के बारे में। पीपल आर एक अफ्रीकी मुल्क बुरकीना फासो वहां का एक छोटा सा गांव पंटोई। वहीं 14 मार्च 1988 को एक बच्चा पैदा हुआ। नाम रखा गया इब्राहिम ट्रावरे। कौन जानता था कि यह बच्चा आगे चलकर एक दिन पूरी दुनिया के सामने एक मुस्लिम लीडर के तौर पर खड़ा होगा और उसके बोलने से अमेरिका, इजराइल और यूरोप के पसीने छूटने लगेंगे। आज दुनिया जिसे अफ्रीका का नया सुल्तान कह रही है। वो खुद को हजरत बिलाल हबसी रदी अल्लाह ताला अनू के खानदान का कहते हैं। जिनकी लोग कभी सलाहाउद्दीन अयूबी से तो कभी सद्दाम हुसैन से तुलना करते हैं। वो कोई आम लीडर नहीं है। वो एक लहर है। एक आवाज है जो कमजोरों के लिए उठी है। टट्रावरे की कहानी गांव से शुरू होती है। जहां ना बिजली थी, ना पक्के रास्ते। यहां बच्चे मिट्टी में खेलते और खेतों में मेहनत करते। उनके वालिद एक मेहनती किसान थे और मां घर संभालती थी। घर में जो सबसे कीमती चीज थी वो थी ईमानदारी और सब्र की तालीम। यही तालीम इब्राहिम की बुनियाद बनी। गांव के एक छोटे से स्कूल से पढ़ाई शुरू की। फिर बुरकीना फासू की राजधानी वागाडुगू में दाखिला लिया और फिर यूनिवर्सिटी ऑफ वागाडगू में तालीम पूरी की। यहीं पर उन्होंने फौज में जाने का फैसला किया। यह फैसला उनका तख्त बदलने वाला नहीं दुनिया बदलने वाला साबित हुआ। ट्रेनिंग के लिए मोरेको की मिलिट्री एकेडमी गए। वहां उन्होंने सिर्फ बंदूक चलाना नहीं सीखा बल्कि अपने मुल्क से मोहब्बत करना सीखा। फिर बुरकीना फासो की फौज में शामिल हो गए। आर्टिलरी यूनिट में काम किया। जहां लोगों ने देखा कि ट्रावरे सिर्फ एक अफसर नहीं एक सच्चा सिपाही है। ना घमंड ना लालच बस जज्बा। उस वक्त गुरकीना फासो दहशतगर्दी से तबाह हो रहा था। गांव के गांव खाली हो रहे थे। बच्चों के स्कूल जलाए जा रहे थे। मस्जिदों में धमाके हो रहे थे। लोगों को इंसाफ नहीं मिल रहा था और सियासी लीडर कुर्सियों पर बैठे तमाशा देख रहे थे।

इसी अंधेरे में ट्रेवरे ने रोशनी की क्षमा जलाने की ठानी। जनवरी 2022 में पहले एक तख्ता पलट हुआ लेकिन हालात और बिगड़े। फिर 30 सितंबर 2022 को कैप्टन इब्राहिम ट्रावरे सामने आए और एक और तख्ता पलट करके हुकूमत को अपने हाथ में ले लिया। लेकिन यह तख्ता पलट सियासत के लिए नहीं था। यह अपने लोगों के लिए था। उनके दर्द के लिए था। अपने पहले बयान में उन्होंने जो अल्फाज कहे वह आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। उन्होंने कहा मैंने तुम्हारे लिए जंग की है और अब तुम्हारे लिए जान भी देने को तैयार हूं। बस यहीं से एक लीडर का जन्म हुआ। लेकिन ट्रेवरे सिर्फ अपने मुल्क की नहीं पूरी दुनिया की बात करते हैं। उन्होंने रूस का दौरा किया। पुतिन से मुलाकात की और कहा हम अब और गुलामी नहीं करेंगे। ना फ्रांस की ना अमेरिका की। उन्होंने वह बातें कही जो शायद कोई अफ्रीकी लीडर कहने की हिम्मत नहीं करता। उनकी एक स्पीच ने पूरी दुनिया को हिला दिया। उन्होंने सीएनएन, बीबीसी और फ्रांस 24 जैसी बड़ी मीडिया को खुलेआम ललकारा। कहा मैं तुम्हारे झूठ को रिकॉर्ड कर रहा हूं। और इस बार तुम माइक बंद नहीं कर सकते। उन्होंने कहा मैंने बचपन से तुम्हारी बनाई झूठी तस्वीरों में अफ्रीका को देखा। भूखा, नंगा, बीमार लेकिन अब मैं बड़ा हो गया हूं। मुझे सच्चाई समझ आ रही है। अफ्रीका वही नहीं है जो तुमने दिखाया। अफ्रीका जिंदा है, मजबूत है और अब तुम्हारे झूठ से डरने वाला नहीं। उनकी यह बातें सिर्फ अफ्रीका नहीं पूरी दुनिया के उन लोगों के दिलों में उतर गई जो जुल्म के खिलाफ आवाज उठाना चाहते हैं। ड्रेवरे एक सच्चे मुसलमान हैं। उनकी हर बात में इस्लाम की झलक मिलती है। जब वो इंसाफ, बराबरी और खुद मुख्तारी की बात करते हैं तो लगता है जैसे कि किसी मस्जिद के मेंबर में कोई खुतबा दिया जा रहा हो। दहशतगर्दी के खिलाफ उनकी जंग सिर्फ एक हुकूमत की नहीं एक दीनी जिम्मेदारी है। टावरे को लोग थॉमस संकारा जैसे पुराने रेवोल्यूशनरी लीडर से मिलाते हैं। उनकी सादा जिंदगी, सख्त रवैया और मजबूत इरादे लोगों को जोश से भर देते हैं। कई बार तख्ता पलट की कोशिश हुई लेकिन ट्रेवरे डरे नहीं बल्कि और मजबूती से खड़े हुए। खबर है कि रूस ने उनकी हिफाजत के लिए स्पेशल कमांडो भी भेजे हैं। क्योंकि अब उनकी जान को खतरा है। वह सिर्फ एक लीडर नहीं अब एक मिसाल बन चुके हैं। लेकिन चुनौती कम नहीं है। दहशतगर्दी, सियासी तनाव और मगरबी ताकतों का दबाव इन सबके बीच ट्रेवरे को अपने मुल्क को बचाना है। मगर उन्होंने हार नहीं मानी और यही बात उन्हें एक सच्चा लीडर बनाती है। 10 मई 2025 को जब ट्रावडे ने फिमास्को का दौरा किया तो पुतिन ने उन्हें गले लगाकर कहा तुम सिर्फ अपने मुल्क के लीडर नहीं एक नई दुनिया के लीडर हो। यह वो इज्जत है जो सिर्फ बहादुरों को मिलती है। ट्रावरे की कहानी अभी खत्म नहीं हुई। यह तो बस शुरुआत है। एक गांव का सीधा साधा लड़का अब अफ्रीका के नक्शे को बदल रहा है। वो लड़ रहा है इंसाफ के लिए, मुसलमानों की इज्जत के लिए, अपने मुल्क की खुद मुख्तारी के लिए। अब सवाल यह है कि क्या इब्राहिम ट्रावरे वाकई उस इंकलाब की शुरुआत है जिसकी अफ्रीका को सदियों से तलाश थी। क्या वह अपना मुल्क दहशतगर्दी और गरीबी से आजाद करा पाएंगे? यह जवाब वक्त देगा। लेकिन एक बात साफ है आज अफ्रीका में और पूरी मुस्लिम दुनिया में एक नया नाम गूंज रहा है। इब्राहिम ट्रेवरे। आप उन्हें किस तरह का लीडर मानते हैं? नीचे कमेंट में जरूर बताएं। आर्टिकल पसंद आया हो तो शेयर करें ताकि यह कहानी उन तक पहुंचे जिन्हें आज भी अफ्रीका सिर्फ भूख और जंग का नाम लगता था।