आपने वो कहावत तो सुनी होगी – “किसी चीज़ की आदत डाल दो, फिर उसी चीज़ पर पैसे वसूलो।” कुछ ऐसा ही अब यूपीआई के साथ होता नज़र आ रहा है।
कुछ समय पहले मैंने एक वीडियो में बताया था कि कैसे बेंगलुरु के 14,000 दुकानदारों को यूपीआई से जुड़े जीएसटी नोटिस भेजे गए और इसके विरोध में उन्होंने यूपीआई पेमेंट बंद कर कैश लेना शुरू कर दिया। उस वक्त मैंने मज़ाक में कहा था कि क्या पता, एक दिन सरकार आम जनता से भी यूपीआई पर चार्ज लेने लगे… और अब वो दिन करीब लगता है।
क्यों लग सकता है यूपीआई पर चार्ज?
यूपीआई (Unified Payment Interface) ने पिछले कुछ सालों में हमारी ज़िंदगी बदल दी। अगस्त 2023 में रोज़ाना करीब 35 करोड़ ट्रांज़ैक्शन होते थे, जो अगस्त 2025 तक बढ़कर लगभग 70 करोड़ हो गए। जुलाई 2025 में ही 10,950 करोड़ ट्रांज़ैक्शन हुए, जिनकी वैल्यू 25 लाख करोड़ रुपये थी।
इतना बड़ा सिस्टम इतने समय तक फ्री में कैसे चला?
असल में, सरकार हर साल बैंकों और फिनटेक कंपनियों को सब्सिडी देती थी, ताकि ट्रांज़ैक्शन पर कोई चार्ज न लगे। लेकिन अब सरकार ने ये सब्सिडी 4,500 करोड़ रुपये से घटाकर सिर्फ 1,500 करोड़ रुपये कर दी है। नतीजा – बैंक और पेमेंट कंपनियां अब ये खर्च कस्टमर और दुकानदारों से वसूलने की तैयारी में हैं।
किस बैंक ने क्या शुरू किया?
1 अगस्त 2025 से ICICI बैंक ने पेमेंट एग्रीगेटर (जैसे Razorpay, Cashfree, PayU) के जरिए होने वाले यूपीआई ट्रांज़ैक्शन पर चार्ज लगाना शुरू कर दिया है।
अगर रिसीवर का अकाउंट ICICI बैंक में है: ₹100 पर 2 पैसे (मैक्स ₹6)
अगर रिसीवर का अकाउंट किसी और बैंक में है: ₹100 पर 4 पैसे (मैक्स ₹10)
उदाहरण:
₹5,000 भेजा → ICICI में अकाउंट है तो ₹1 चार्ज
₹50,000 भेजा → ICICI में अकाउंट है तो ₹6 मैक्सिमम
वही, किसी दूसरे बैंक में है तो ₹2 या ₹10 मैक्सिमम
Yes Bank और Axis Bank ने भी इसी तरह के चार्ज लगाना शुरू कर दिया है।
वॉलेट पेमेंट पर अलग चार्ज
PPI वॉलेट (Paytm, PhonePe Wallet) से अगर 2,000 रुपये से ज्यादा का पेमेंट यूपीआई के जरिए होता है, तो 1.1% इंटरचेंज फीस लगती है। यह चार्ज ग्राहक से नहीं, बल्कि दुकानदार या कंपनी से वसूला जाता है।
लेकिन असली बात यह है कि दुकानदार अक्सर यह खर्च ग्राहक पर डाल देते हैं।
असर किन पर पड़ेगा?
फिनटेक कंपनियां – हर ट्रांज़ैक्शन पर उनका खर्च बढ़ेगा, मुनाफा घटेगा।
दुकानदार – चार्ज बढ़ने पर कीमतों में इज़ाफा कर सकते हैं।
ग्राहक – अंत में यह बोझ आम जनता पर ही आएगा।
अगर सरकार ने सब्सिडी फिर से नहीं बढ़ाई, तो छोटे-बड़े ट्रांज़ैक्शन पर चार्ज लगना तय है। और जैसे-जैसे बैंक दबाव में आएंगे, ये चार्जेस बढ़ भी सकते हैं।
क्या करना चाहिए?
बेंगलुरु के कई दुकानदार पहले ही कैश पेमेंट पर लौट चुके हैं। सवाल है – क्या हमें भी फिर से “नो यूपीआई, ओनली कैश” करना होगा? या थोड़े चार्ज के साथ डिजिटल सुविधा जारी रखनी चाहिए?
निष्कर्ष:
यूपीआई ने भारत को डिजिटल बनाने में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन अब फ्री वाले दिनों का अंत शुरू हो चुका है। अभी चार्ज कम हैं – ₹100 पर 2 या 4 पैसे – पर यह आगे बढ़ सकता है।
सरकार चाहे तो सब्सिडी बढ़ाकर इस बोझ को कम कर सकती है, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ, तो आने वाले समय में डिजिटल पेमेंट “फ्री” नहीं रहेगा।
आपकी क्या राय है? क्या यूपीआई पर चार्ज लगना ठीक है? कमेंट में बताइए।